Friday, December 16, 2011

WORLD FAMOUS “SHAB-E-MALWA”


Sant.Kabir  the famous bhakti kavi written and sing a song  for “MALWA”  that  मालव माटी गहन गंभीर ,पग पग रोटी डग डग नीर which means that in Malwa basic requirement of  a person of food and water is available on every foot  step. The Malwa plateau of Madhya Pradesh of of which Indore is a part  is famous  for its  cool evenings  and nights .The Mughals called it “SHAB-E MALWA  (The nights of Malwa)” ,SUBHAH-E-BANARASSHAM-E-AWADHA and SHAB-E-MALWA.  The morning of Banaras,the eveing of Awadh and the Nights of Malwa were always like by all the  persons who came from other areas.. Some films also explained the same like Satyajit Ray's Aparajito and Mani Kaul's Siddheshwari, Awadh with Ray's Shatranj Ke Khilari and the films of Muzzafar Ali especially Umrao Jaan. Kumar hahani's Khayal Gatha parts of which had been shot in the deserted fort city of Mandu in  Dhar district.

Shab-e-Malwa is dusk time in the Malwa region of Madhya Pradesh. Due to its altitude of about 550 to 600 meters above mean sea level, the region has comparatively cool evenings against the hot days during the summer season. Even when the daytime temperatures in Malwa touch 45 celsius the evenings and nights would be in the 20 to 22 celsius range. Guests who come from Kerala, Mumbai, Pune and Delhi comment on these cool evenings and remember them with great joy when they  reminisce about their trips. Perhaps that is why the British chose Mhow in Indore district as a cantonment and it has become the town which has three of the Indian Army's most prestigious training institutions. The British did choose some excellent places like Bangalore, Pune, Pachchmarhi and Mhow to set up their cantonments and training centres. Army Officers who come here on courses from distant corners of India always comment on the pleasant and mild weather of Malwa plateau. However, unlike other places in central India, the summer nights in Indore are quite pleasant because of the cool evening breeze, popularly referred to as Shab-e-Malwa.


Tuesday, November 29, 2011

कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा


कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा
कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा
दाल बिकी री साठ की ने सब्जी चालीस पार
महगाई की बात कारनों अब हुई गयो बेकार
गद्डा जेसा काम करा और दाल रोटी खावा
कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा
छोरा छोरी की फ़ीस भरी के खुटी गी पगार
राशन पानी सारु लावा बैंक से उधार
ब्याज भरने सारु भी ब्याज पे रुपयों लावा
कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा
किरायों लेवा मकान मालिक हर महीने आई जावे
दूध वालो भी हर महीने पानी का पैसा पावे
छे छे महीना बाईरा के मायका में छोड़ावा
कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा
पेट्रोल को सरकार हर महीने भाव बडावे
बिचारी जनता विना बात के चारी आडी लुटावे
इ ऍम आई भरी भरी के खुशी का गीत गावा
कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा



खेत मॉल में सड़क बनी गी खेती कोणी आवे
जमीदार हु इ के नोकर वई गया कई समज नि आवे
चउदा घंटा काम करा और बाबु केवावा
कई नवो साल मनावा दादा नवो साल मनावा

Sunday, November 27, 2011

मालवी का विकास : संचार माध्यमों की जिम्मेदारी


भारत के दिल में बसा प्राक्रतिक सम्पदाओ का धनी सुशांत  मालवा  की मालवी भाषा  इतनी मीठी हे कि बोलने व सुनने वाले दोनों प्रसन्न हो जाते हे | संत कबीर ने सच ही कहा हे कि मालव माटी गहन गंभीर पग पग रोटी डग डग नीर “| मध्य प्रदेश व राजस्थान के करीब १.७५ करोड लोग मालवी ‘ बोलते एवं लिखते हे | मालवी भाषा में पूरा साहित्य उपलब्ध हे व मालवा में  कई बड़े बड़े साहित्यकार हुवे हे |
संचार माध्यमों में आकाशवाणी व दूरदर्शन ने हमेशा मालवी ‘ के विकास में अपना योगदान उतना नहीं दिया जितनी इनकी जिम्मेदारी थी |  कई सालो से आकाशवाणी खेती गृहस्थी एवं नंदाजी भेराजी ,ग्राम लक्ष्मी जैसे प्रोग्राम करते आ रही हे | अधिकतर प्रोग्राम सिर्फ खेती बड़ी और ग्रामीण लोगो को लक्छ करके किये जाते रहे हे | मालवी भाषा के विकास ,मालवी को आम आदमी को ध्यान में रख करके कोई भी प्रोग्राम नही किया गया |क्या मालवी जानने वाले सिर्फ खेती बाड़ी व ग्रामीण ही हे ?  क्या मालवी जानने वाले मालवा के लोग विद्यार्थी ,व्यापारी ,डॉक्टर ,इन्जिनियर ,लेखक,संगीतकार ,गायक ,आदि नहीं हे फिर मालवी में सिर्फ खेती ग्रहस्थी ही क्यों ? आर टी आई  की जानकारी के अनुसार आकाशवाणी द्वारा रोजाना १ घंटा ९ मिनिट में खेती गृहस्थी व ग्राम लक्ष्मी का प्रोग्राम किया जाता हे जो कुल समय का १०% भी नहीं हे |मालवा हॉउस , मालवा की सरजमि पर बना हुआ हे और मालवी के सिर्फ  १०% कार्यक्रम |




दूरदर्शन की स्थिति तो और भी सोचनीय हे | आर टी आई से प्राप्त सुचना के अनुसार पिछले पाच सालो में दूरदर्शन ने मालवी में १४६ कार्यक्रम किये हे यानि साल में सिर्फ ३५ प्रोग्राम | ३६५ दिन में ३५ प्रोगाम वो भी १.३० मिनिट से लगाकर २५ मिनिट की अवधि के | कितना कम ध्यान हे दूरदर्शन का मालवा की मालवी पर | मालवी कार्यक्रम में सिर्फ लोक गीत ,लोक रंग व खेती के कार्यक्रम दिए गए हे| दूरदर्शन के अनुसार मालवा के लोग और कुछ नहीं जानते सिर्फ लोक गीत और खेती के अलावा | इसी का नतीजा हे की मालवी को ग्रामीण भाषा बना दिया गया हे |
सरकारी संचार माध्यम प्रसार भारती के अंतर्गत चलते हे जिसका उद्देश्य संस्कृति व छेत्रिय बोलियों और भाषाओ का प्रचार प्रसार करना लेकिन हमारे ये तंत्र अपने उदेश्यो से भटक गए हे | सरकारी संचार माध्यमो को चाहिए की मालवा की मालवी में कम से कम ७५% समय मालवी कार्यक्रम को दे | मालवी में गीत ,कहानी, नाटक,समाचार ,चर्चार्ये ,कवि सम्मेलन ,कव्यगोष्टि, नोटंकी, माच ,तेजाजी की कथा ,कन्गुवाल्या का गीत , भोपा भोपी का गीत, संजा का गीत ,हरबोला की आवाज , होली गीत , शादी के गीत, मालवी छल्ला ,मालवी फिल्मी गीत,परिचर्चे ,मालवी चोपाल चर्चा ,अलाहा उदल ,कबीर वाणी ,भाट भटियानी का गीत,व्यापार की बाते,जब तक मालवी में संचार माध्यमों द्वारा होना चाहिए तभी इन संचार माध्यमों की उपयोगिता एवं सार्थकता होगी और ये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर पायेगे|



Monday, November 21, 2011

मालवी छल्ला : मालवा की एक सांस्कृतिक परम्परा


मालवा में उत्सव मानाने की पुराणी परम्परा री हे | पेला सेज मालवा में लोग टेम टेम पे उत्सव मनाता आया हे | पण आज जैसा लाल बाघ ने राजवाडा जेसा  उत्सव नि होता था | मालवा में शादी ब्याव हो के तेवार सगळा उत्सव जैसा मनाया जावे हे | शादी ब्याव की अपन बात करा तो शादी मालवा में १५ दन से कम की कदी नि होती थी ने अबे भी १० दन की तो होय हे | कणी भी गाम या सेर में बियाव होई तो १० से १५ दन आखो गाव ने सगला नातेदार ने रिश्तेदार भेला हुई के बियाव को पुरो आनंद ले | दस दन पेला से लाड़ा /लाड़ी के हल्दी लगे ने फिर शुरू होई बाना झेलने को काम | कदी अणि गाव में तो कदी अणि गाव में | कदी बा का या तो कदी काकाजी का या | रोज बाणों झेलो ने लाड़ा /लाड़ी के रोज कोल्या दी के सान्जे " बनोलो " निकलने को रिवाज हे | "बनोलो " को मतलब हे के सान्जे लाड़ा लाड़ी को जुलुस निकल्नो | मालवा में छोरा/छोरि होण के नाचवा को रिवाज नि हे | अबे तो सेर का देखा देखि छोरा छोरि होण नाचवा लगी गया पण पेला छोरा छोरि के नाचवा को रिवाज नि थो | तो शादी व्ह्याव में ढोल बजे ने गाम के पेलवान ने जवान छोरा ढोल पे लठ, तलवार , बनेठी ,फरसा घुमावे ने अपनी ताकत को प्रदर्शन करे जीके देखि के गाव की छोरि होण उनकी बड़ाई करे ने सब उनके देखि के खुस होवे.

छल्ला गाने को रिवाज भी अणि ब्याव होण की जान होवे हे | छल्ला मतलब पेला कवि होता था पण सब लिख्या पड्या नि होता था | तो वि लोग कविता जोड़ी के छल्ला का रूप में शादी बियाव में सुनाता था | इ छल्ला श्रग़ार,सामयिक ,वीरता आदि रस का होता था | अणिके सुणावा को तरीको भी भोत मस्त थो | एक हाथ में तलवार ने मुछ पे टाव देता हुआ कटिलो जवान जड़े छल्ला गातों तो खूब अच्हो लागे | छल्ला का हर दोहा पे ढोल को डंको ने पूरी होने पे अखाडा को ढोल ने फिर छल्ला गाने वालो तलवार ली के ढोल पे नाचतो ने तलवार घुमातो | रात रात भर लोग "बनोलो " निकालता छल्ला को आनंद लेता |

श्रग़ार रस का छल्ला :
सुन छल्ला रे हा रे छल्ला रे
नदी किनारे छल्ला दिवा बाले रे कई
काजल पड़े रे खंडार |
थारी सोई राम दोई काजल पड़े रे खंडार
आँजन वाली गोरी पातली रे कई
निरखन वालो रे गवार |
सामयिक विषय पे छल्ला
सुन छल्ला रे हा रे छल्ला रे
गाँधी बाबा ने छल्ला चकर चलायो ने कई
अग्रेज ने छोड़ी सरकार |
थारी सोई राम दोई  अग्रेज ने छोड़ी सरकार
नेहरु जी बनया परधान मंत्री ने कई चली पड़ी सरकार ||

पर्यावरण पे छल्ला
सुन छल्ला रे हा रे छल्ला रे
गोया काकड़ सब चली गया ने चारा की मारा मार |
थारी सोई राम दोई चारा की मारा मार
चारो तो सगलो नेता खाई गया ने ढोर  राहे निराहार ||

भ्रस्ट नेताओ पे  छल्ला
सुन छल्ला रे हा रे छल्ला रे
बेन बेटी ना इज्जत लुटी रिया खाकी वाला गद्धार |
थारी सोई राम दोई खाकी वाला गद्धार
खद्दर वाला ने इमान छोड़ी दियो ने जूता की रेलम पार ||

मालवी मजाकिया छल्ला :
काली घोड़ी काला घुघरा रे पान सारी रात
जागने वाला जागो के हुई छल्ला की रात  |


 छल्ला भोल्का की भोलकी रे भैस को पोलो सिंग
सिंग में भारी दारू तो छोडे अमर सिंग |

छल्ला गाने हो ने सुननो होई तो मालवा में जाओ जा असली मालवा बस्यो हे |

Thursday, November 10, 2011

भारत की कुल १९८ क्षेत्रीय भाषाए "लुप्त होने के कगार पर”


राजेश भंडारी बाबु’
१०४ महावीर नगर ,इंदौर 
 

भारत में  क्षेत्रीय भाषाओ का विलुप्त  होना शुरू हो गया हे | भारत सरकार  ऐसा कोई सर्वे करवाती हे या नहीं हे तो पता नहीं परन्तु "यूनिस्को  एटलस ऑफ़  दी  वर्ल्ड लेंग्वेगेस इन डेंजर " जो की यूनाइटेड नेशनल एजुकेशनल  साएंटीफिक  एंड कल्चरल ओर्गानेसन द्वारा बनाया गया हे जिसमे विलुप्त होती जा रही पुरे विश्व की छेत्रीय भाषाओ की जानकारी दी गयी हे | पुरे विश्व में २४७४ भाषाए विलुप्त होने के कगार पर हे जिसमे से १९८ भाषा अकेले भारत वर्ष से हे |

भारत की कुल १९८ छेत्रीय भाषाओ को "विलुप्तप्राय "  श्रेणी में रखा गया हे | नेपाल ,भूटान ,एवं बंगलादेश की सीमाओं पर बोली जाने वाली ९ भाषाओ  अहोम, एंड्रो, रंकास ,सेंगाई, तोलचा पूरी तरह से विलुप्त हो चुकी हे जिनको कोई बोलने वाला नहीं हे ४२ भाषाओ को लाल रंग से मार्क किया गया हे  जिन पर खतरा मंडरा रहा हे इनको अत्यंत  गंभीर रूप से लुप्त होने के कगार पर श्रेणी में रखा गया हे | नाइकी व् निहाली जो मध्य भारत में बोली जाती हे खतरे में हे | साउथ में बोली जाने वाली तोडा ,कुरुबा ,बेलारी  भी खतरे में बताई जा रही हे | पेंगो एवं बिरहोर भी खतरे में हे | नेपाल की सीमा पर बोली जाने वाली टोटो, ब्न्गनी ,पंग्वाली ,सिर्मौन्दी  भी खतरे में बताई गयी हे | भाषाओ को गंभीर रूप से लुप्त होने के कगार पर  श्रेणी में  रखा गया हे | जिसमे गेटा नामक भाषा पूर्वी तटवर्तीय सीमा पर बोली जाती हे खतरे में बताई गयी हे | बाकि ५ भाषाए बंगलादेश एवं भूटान की सीमाओं पर बोली जाती हे |जिसमे अटोंग, अतोन , रेमो, टाइफैक , मुख्या रूप से पीले रंग से मार्क की गयी हे |इन भाषाओ पर यदि ध्यान दीया जाता हे तो इनको बचाया जा सकता हे |

इसके अलावा ६३ भाषाओ को निश्चित रूप से खतरे में बताया गया हे जो पीले रंग से मार्क की गयी हे | यदि समय रहते इन पर ध्यान दीया जाता हे तो इनको बचया जा सकता हे | इनमे मुख्य रूप से नेपाल, भूटान, बंगलादेश की सीमाओं पर बोली जाने वाली भाषाए हे मध्य में बोली जाने वाली  न्हाली, कोलामी आदि भाषाओ पर अभी ध्यान देने की जरुरत हे |
इसके अलावा ८२ भाषाओ असुरक्चित वनरेबल इन डेंजर बताया हे जो कभी भी विलुप्त हो सकती हे | गोंडी,बोडो, बोकर, मणिपुरी केलो , गड्वाली ,गोंडी, सिमी व् अन्य भाषाओ को इस कटागरी में लिया गया हे |ये भाषा जिन्दा तो हे परन्तु खतरा कभी भी बाद सकता हे |
हाल में राज्य  सभा में एक मेम्बर ने भी यह मुद्दा सदन में उठाया था अतारंकिंत प्रश्न  क्र. ३३३२ जो श्री कप्तान सिंह सोलंकी ने पूछा जिसका जवाब मानव संसाधन मंत्रालय में राज्य मंत्री डा .दी पुर्न्दरी ने जवाब में कहा के तथापि यूनिस्को की  एटलस में सूचीबद्ध इन भाषाओ को भारत की जनगनना रिपोर्ट ,२००१ में भाषाओ के रूप में मान्यता नहीं दी गयी हे | लुप्त होने का खतरा ,भाषा दर भाषा भिन्न भिन्न होता हे इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा की १९६ भाषाए विलुप्त होने के कगार पर हे | मंत्रालय ने स्वदेशी पारंपरिक ज्ञान तथा लुप्त होने क स्थिति में भाषाओ की सुरक्छा  हेतु मानव संसाधन विकास मंत्री की  अध्य्क्चता में एक गोलमेज का गठन किया हे |

भारत सरकार का ग्रह  मंत्रालय को समय रहते इन रीजिनल भाषाओ पर समय रहते  ध्यान देना होगा तभी इन विलुप्त होती इन भाषाओ व् लोगो की प्रति न्याय होगा | अन्यथा संस्कृति व् भाषाओ का धनि देश जिसकी हर १० कोस पर भाषा बदल जाती हे ये बोलिया इतिहास बन कर रह जावेगी | और आनेवाली पीडी हम सब से जवाब मांगेगी तब हमारे हाथ में कुछ नहीं होगा.|